वह एक ऐसी भाषा है,
जो पूरे भारत को जोडती है,
जो सारॆ हिंदुस्तानियों को भाई-बहन बनाकर रखती हैं।
जो हिंदुस्तान की आन और शान है, वह है हिंदी।
हिंदी सुनकर कोई भी शांत हो जाता है,
हिंदी कोई भी मनुष्य को नम्र बना देती है।
हिंदी सब के दिलों में राष्ट्र के लिए प्यार जगाती हैं,
और हिंदी हमारे साहित्य को बढाती ओर लोकप्रिय बनाती हैं।
हिंदी पर सबको गर्व हैं, हिंदी सब के लिए निराली है,
हिंदी हमारी जान हैं क्योंकि हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा हैं।
हम सब बहुत खुशनसीब हैं कि हिंदी हमारी भाषा है,
क्योंकि सारे देशों को इतनी सुंदर भाषा नही मिलती,
जितनी हमारी भाषा हिंदी है।
राष्ट्रभाषा हिंदी
विस्पी
कारकारिया
काव्य संग्रह
आखिर पाया तो क्या पाया?
अवेझ शेख
जब तान छिड़ी, मैं बोल उठा
जब थाप पड़ी, पग डोल उठा
औरों के स्वर में स्वर भर कर
अब तक गाया तो क्या गाया?
सब लुटा विश्व को रंक हुआ
रीता तब मेरा अंक हुआ
दाता से फिर याचक बनकर
कण-कण पाया तो क्या पाया?
जिस ओर उठी अंगुली जग की
उस ओर मुड़ी गति भी पग की
जग के अंचल से बंधा हुआ
खिंचता आया तो क्या आया?
जो वर्तमान ने उगल दिया
उसको भविष्य ने निगल लिया
है ज्ञान, सत्य ही श्रेष्ठ किंतु
जूठन खाया तो क्या खाया?
बापू
अवेझ शेख
संसार पूजता जिन्हें तिलक,
रोली, फूलों के हारों से,
मैं उन्हें पूजता आया हूँ
बापू ! अब तक अंगारों से।
अंगार, विभूषण यह उनका
विद्युत पीकर जो आते हैं,
ऊँघती शिखाओं की लौ में
चेतना नयी भर जाते हैं।
उनका किरीट, जो कुहा-भंग
करके प्रचण्ड हुंकारों से,
रोशनी छिटकती है जग में
जिनके शोणित की धारों से।
झेलते वह्नि के वारों को
जो तेजस्वी बन वह्नि प्रखर,
सहते ही नहीं, दिया करते
विष का प्रचण्ड विष से उत्तर।
अंगार हार उनका, जिनकी
सुन हाँक समय रुक जाता है,
आदेश जिधर का देते हैं,
इतिहास उधर झुक जाता है।